Over 100 MSME Durgs firms modarnizing as par WHO
नई दिल्ली। MSME (छोटी सूक्ष्म) दवा कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय मानकों पर अपग्रेट होने के लिए केंद्रीय वित्तीय सहायता के लिए 103 एप्लिकेशन को मंजूरी दी गई है।
सरकार की प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना के तहत कुल वित्तीय सहायता 7105 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है।
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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में लगभग 10,000 दवा बनाने वाली फर्में हैं जिन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
लेकिन उनमें से केवल 2,000 के पास WHO का GMP (Good Manifacture certificate) ही है।
यह योजना पिछले साल फार्मा कंपनियों के लिए शुरू की गई थी ताकि वे घटिया भारतीय दवा निर्यात से जुड़े मामलों में कमी लाई जा सके।
सरकार ने 2023 में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत शिड्यूल्ड M में बदलाव किया गया था।
ताकि कंपनियों के लिए भारत में निर्मित दवाओं की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अच्छे विनिर्माण अभ्यासों का पालन करना अनिवार्य हो।
फार्मास्युटिकल विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि अब तक दो कंपनियों ने प्रक्रिया पूरी कर ली है।
सितंबर 2024 में, सरकार ने दवा निर्माताओं को अपनी सुविधाओं को अपग्रेड करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन को 1 करोड़ से बढ़ाकर 2 करोड़ कर दिया।
इसके तहत, 1 करोड़ से 50 करोड़ से कम औसत राजस्व वाली दवा इकाइयों को निवेश का 20% भुगतान किया जाएगा।
750 करोड़ से 250 करोड़ से कम राजस्व वाली फर्में निवेश का 15% पाने के लिए पात्र हैं।
जबकि 250 करोड़ से 500 करोड़ से कम राजस्व वाली फर्में निवेश का 15% पाने के लिए पात्र हैं।
यह प्रोत्साहन उपयोगिताओं, स्वच्छ कक्ष सुविधा, परीक्षण उपचार/अपशिष्ट प्रबंधन और उत्पादन उपकरण एवं प्रयोगशाला, स्थिरता कक्ष जैसी वस्तुओं पर किए गए व्यय के लिए दिया जाता है।
प्रवक्ता ने कहा कि अन्य 200 इकाइयों ने रुचि दर्ज की है। भारत के दवा निर्माण के हब माने जाने वाले राज्य हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हैदराबाद, महाराष्ट्र और गुजरात केंद्रीय औषधि लाइसेंसिंग प्राधिकरण (CDLA) के नियामक रडार पर हैं।
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