November 15, 2025

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Dhirendra Shastri की पदयात्रा में शामिल हुए अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी

Dhirendra Shastri की पदयात्रा में शामिल हुए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज

पदयात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, अपितु समाज को जागृत करने वाला एक आध्यात्मिक अभियान है – रविंद्रपुरी

दिल्ली से शुरू हुई यह सनातन पदयात्रा वृंदावन में समाप्त होगी।

यात्रा में उमड़ रहे जन सैलाब से न केवल प्रशासनिक स्तर पर वय स्थान को बनाए रखने में दिक्कत हो रही है इस यात्रा में शामिल रही बड़ी बड़ी सेलिब्रेटी के शामिल होने से यह चुनौती बढ़ रही है।

Dhirendra Shastri Akhada Parishad persident joined padytara at Mathura सनातन पद यात्रा में शामिल हुए अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि आज हम सब यहाँ एक ऐसे पावन अवसर पर एकत्र हुए हैं, जहाँ भक्ति, सेवा और संकल्प- तीनों का अद्भुत संगम दिखाई देता है।

उन्होंने कहा कि धीरेन्द्र शास्त्री जी की यह पदयात्रा हमें यह संदेश देती है धर्म केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि मार्गों पर भी चलता है; साधना केवल आसन पर नहीं, बल्कि कदम ताल सेभी होती है।

अखाड़ा परिषद अध्यक्ष ने कहा कि परिषद सदैव ऐसे संतों का सम्मान करता है जो समाज में प्रकाश फैलाने का कार्य करते हैं।

Dhirendra Shastri Akhada Parishad persident joined padytara at Mathura धीरेन्द्र शास्त्री जी ने अपने तप, अपने ज्ञान और अपनी विनम्रता से यह सिद्ध किया है कि सच्चा संत वही है, जो समाज के बीच जाकर समाज की पीड़ा को समझे।

उनकी पदयात्रा का उद्देश्य केवल स्थान-स्थान पर जाना नहीं है
बल्कि हर मनुष्य के हृदय तक पहुँचना,
युवा पीढ़ी में संस्कारों का संचार करना,
और समाज को धर्म, सत्य और सदाचार की राह दिखाना है।

आज जब संसार भौतिकता की ओर भाग रहा है, तब ऐसे संतों का आगे आना अत्यंत आवश्यक है।
क्योंकि—

यदि संत ही आगे बढ़कर समाज की बुराइयों का विरोध नहीं करेंगे,
तो फिर कौन करेगा?

पदयात्रा हमें अनुशासन सिखाती है, धैर्य सिखाती है, और यह बताती है कि छोटे-छोटे कदम भी बड़े परिवर्तन ला सकते हैं। धीरेन्द्र शास्त्री जी के हर कदम में लोककल्याण की भावना निहित है।

अखाड़ा परिषद की ओर से हम उन्हें साधुवाद देते हैं, उनके इस पवित्र अभियान को आशीर्वाद देते हैं, और प्रार्थना करते हैं कि—

भगवान उन्हें शक्ति दें, स्वास्थ्य दें,
और समाज सेवा का यह दिव्य कार्य
यूँ ही निरंतर आगे बढ़ता रहे।

अंत में, मैं सभी भक्तों से निवेदन करता हूँ—
संतों के कदमों से जुड़ें, उनके संदेशों को जीवन में अपनाएँ,
क्योंकि यही मार्ग हमें धर्म, शांति और समृद्धि की ओर ले जाता है।

इन्हीं शब्दों के साथ मै अपनी वाणी को विराम देता हूं।

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