सितारगंज – कोटेदारों द्वारा गरीबों के हक की अनाज की कालाबाजारी जमकर की जा रही है.
लेकिन कोटेदारों द्वारा कालाबाजारी का इतना नायाब तरीका खोजा गया है
कि पकड़े जाने के बावजूद भी अपनी गर्दन बचा लेते हैं उनके नए तरीके के सामने प्रशासन भी बोना साबित हो रहा है।
बीते शुक्रवार को सितारगंज क्षेत्र के सिसैया गाँव में सरकारी अनाज की कालाबाजारी की शिकायत पर सितारगंज प्रशासन द्वारा एक गोदाम में छापेमारी की गई थी।
जिसके बाद उप जिलाधिकारी तुषार सैनी ने गोदाम को सील कर दिया था। वही पूर्ति निरीक्षक,
वरिष्ठ अधिकारी और तहसीलदार जगमोहन त्रिपाठी की टीम मौके पर पहुंची इसके बाद गोदाम की जांच की गई।
जिसमें लगभग 200 कट्टे गेहूं और लाही के पाए गए थे। वही गोदाम मालिक से राशन भंडारण के दस्तावेज मांगे गए लेकिन गोदाम मालिक राशन भंडारण के पुराने कागजात दिखाता रहा।
नए कागजात दिखाने में नाकामयाब रहा जिसके बाद प्रशासन ने गोदाम मालिक को 1 दिन का समय दिया।
लेकिन 1 दिन का समय बीतने के बाद भी गोदाम मालिक कागजात नहीं दिखा पाया।
जिसके बाद अधिकारी जांच रिपोर्ट को उच्च अधिकारियों के समक्ष पेश करने की बात कह रहे हैं।
वही पूर्ति निरीक्षक द्वारा दिए गए बयान के बाद स्पष्ट है कि चक्की व्यवसाय की गर्दन प्रशासन नाप नहीं पाएगा।
पूर्ति निरीक्षक के बयान से साफ होता है कि चक्की व्यवसाय बिल्कुल निर्दोष है लेकिन हैरानी इस बात की है कि सितारगंज क्षेत्र में राजस्व विभाग, पूर्ति निरीक्षक,
वरिष्ठ विवरण विभाग तीन विभाग होने के बाद भी सितारगंज क्षेत्र में राशन कालाबाजारी थमने का नाम नहीं ले रही है।
यह कोई पहला मामला नहीं है जो प्रशासन ने कालाबाजारी की शिकायत पर प्रशासन द्वारा सिसैया गांव में छापेमारी की गई
इससे पहले भी प्रशासन द्वारा ग्राम मटिहा बंद पड़े गोदाम में 920 कट्टे चावल और गेहूं के पकड़े गए थे।
जिसमें कुछ लोगों को राशन कालाबाजारी के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ी थी।
वही ग्राम कुंवरपुर सिसैया में भी पूर्व में प्रशासन द्वारा एक पिकअप वाहन में गेहूं और बारदाना पकड़ा गया था।
जिसके बाद प्रशासन द्वारा गाड़ी को मौके पर ही सीज कर दिया गया था।
अगर सूत्रों की माने तो कोटेदारों ने राशन कालाबाजारी बड़ा ही नायाब तरीका खोज निकाला है
जिसमें सरकारी अनाज के कट्टे को खोलकर अन्य कट्टों में भरकर उसे ठिकाने लगा दिया जाता है।
या फिर सीलबंद सरकारी कट्टों को खोलकर उसका मुंह अन्य माध्यम से बंद कर दिया जाता है।
ऐसे में कालाबाजारी करते हुए अगर पकड़े भी गए तो कालाबाजारी पाक साफ साबित हो जाती है।
उनका तर्क रहता है कि कट्टा खुला हुआ है अनाज बाहरी हो सकता है।
ऐसे में छापेमारी करने वाले अधिकारी भी महज हाथ मलते रह जाते हैं।
कालाबाजारियों के इस नए तरीके के सामने प्रशासन भी बौना साबित हो रहा है।
सवाल यह उठता है आखिर कब तक गरीब का हक मरता रहेगा और प्रशासन कालाबाजारीओं का कुछ भी नहीं कर पाएगा।


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