हरिद्वार(विकास चौहान)। उत्तराखंड के चुनावी महासमर में सभी राजनितिक दल जीत के लिए ऐड़ी चोंटी का जोर लगाये हुए हैं। हरिद्वार लोकसभा सीट पर जंहा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच माना जा रहा हैं। इन सब के बीच बसपा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए अंतरिक्ष सैनी को मैदान में उतारा हैं।
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लेकिन बसपा उम्मीदवार न तो मुकाबले में दिखायी दे रहें हैं यूं कहे की मुकाबले में आना ही नहीं चाहते। मतदान में महज एक हफ्ते का समय बचा है और बसपा उम्मीदवार के चुनाव लड़ने की ही मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। उत्तराखंड में बसपा के गढ़ कहे जाने वाली इस सीट पर क्यों है हाथी की चाल सुस्त यह एक बड़ा सवाल बना हुआ हैं।
सपा—बसपा गठबंधन से सपा गायब
उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीट पर सपा और बसपा ने गठबंधन पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। जिसके बाद उत्तराखंड की इस मैदानी सीट पर गठबंधन का दावा मजबूत दिखायी देने लगा। गठबंधन के इस चुनाव में सपा नेता पूरी तरह से गायब है। प्रत्याशी के नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार तक में गठबंधन वाली सपा कहीं नजर नहीं आ रही।
चुनावी कार्यलय से परहेज
हरिद्वार लोकसभा सीट की 14 विधानसभाओं में हर राजनितिक दलों ने अपने अपने चुनावी कार्यलय खोले है लेकिन जिस तरह की जानकारी मिल रही है बसपा का अभी तक लक्सर में ही एक चुनावी कार्यलय खोला हैं। हालांकि बसपा प्रत्याशी का दावा देहरादून और अन्य जगह भी कार्यलय खोलने का हैं। बुधवार को रुड़की में जरुर एक चुनावी कार्यलय खोल दिया गया। बिना चुनावी कार्यलय के कैसे चुनावी रणनिति पर काम होगा समझ से परे हैं।
बिना अनुमति कर रहे सभा
प्रचार में अकेले भाजपा और कांग्रेस को टक्कर देने निकले बसपा उम्मीदवार जंहा अपने लोगों में जगह बनाने से पिछड़ रहे है तो वहीं कई जगह बिना अनुमति सभा करने की भी सूचनाएं मिल रही है। जानकारी के अनुसार हरिद्वार के कृष्णा नगर में बिना अनुमति के बसपा सभा करने की तैयारी कर रहे थे। मीडिया के पहुचते ही झंडे बैनर उतारकर बिना सभा किये ही जाना पड़ा।
जीत से भी ज्यादा क्या है ?
हरिद्वार लोकसभा सीट पर पिछली बार दलित वोट बैंक ने ही भाजपा को जीत दिलायी थी। उसी वोटबैंक को वापस पाने के लिए बसपा-सपा गठबंधन ने अंतरिक्ष सैनी पर दांव खेला। अभी तक के चुनाव प्रचार में गठबंधन प्रत्याशी जीत तो दूर इस वोट बैंक तक पहुंचना तो दूर बसपा प्रत्याशी की मंशा ही इस चुनाव से कुछ ओर दिख रही हैं। बताया जा रहा है बसपा प्रत्याशी को जीत की उम्मीद से ज्यादा चुनाव के बाद संगठन में बड़ी जिम्मेदारी मिलने की हैं। हालांकि उनकी इस उम्मीद में कितनी सच्चाई है फिलहाल कह पाना मुश्किल हैं। बसपा का चुनाव प्रचार कुछ इस तरह के ही सकेंत देता हुआ नजर आ रहा हैं।
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